हेलीकाप्टर पेरेंटिंग
माता-पिता के तौर पर जिम्मेदारियां निभाना बहुत कठिन हैं क्योंकि आपके मन में हमेशा बच्चे को अच्छी परवरिश देने की टेंशन रहती है और साथ ही आपको बच्चों के मन की बातें जानने के लिए कई तरह के जतन भी करने पड़ते हैं. लेकिन इस कोषिष में कहीं आप हेलीकाप्टर पेरेंट तो नहीं बन गए हैं? इससे आपका बच्चा परेषान तो नहीं हो गया है? सबसे पहले आपके लिए ये जानना जरूरी है कि हेलीकाॅप्टर पेरेंटिंग आखिर है क्या? दरअसल जो माता-पिता अपने बच्चे के हर काम में ज्यादा ही इन्वाॅल्व हो जाते हैं उन्हें इस श्रेणी में रखा जाता है. बच्चों के साथ सपोर्टिव होना और उनके काम में साथ देना एक अलग बात है लेकिन जब इसका दायरा बढ़ जाता है और आप बच्चों की हर छोटी से छोटी चीज को गंभीरता से लेकर उसमें खुद ही लग जाते हैं तब वो हेलिकाॅप्टर पेरेंटिंग की स्थिति बन जाती है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक हेलीकाॅप्टर पेरेंटिंग से प्रभावित बच्चे डिप्रेषन और उत्कंठा के षिकार हो जाते हैं. माता-पिता होने के नाते आप बच्चों के लिए अच्छा करने की सोचते हैं और उनके लिए ओवर-कन्सर्न हो जाते हैं ये स्थिति धीरे-धीरे आपके बच्चे को दूसरों के सामने डिप्रेस करने लगती है. 18 से 25 साल तक के काॅलेज जाने वाले 460 बच्चों पर अध्ययन किया गया. जिन बच्चों की जिंदगी में मां-बाप का दखल ज्यादा था वो अपने फैसले लेने में कम सक्षम नजर आएं. वो किसी भी सवाल का जवाब देने से पहले अपने अभिभावक की ओर देखने लगे. रिसर्च के दौरान उनसे कई टास्क भी कराए गए जिससे ये बात सामने आती है कि किसी मुष्किल हालात का सामना करने में भी ऐसे बच्चे दूसरों के मुकाबले पीछे रह जाते हैं.
इस बात को समझना बेहद जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों से जिस तरह का व्यवहार करते हैं बच्चों का अपने प्रति नजरिया भी वैसे ही बनता है. अगर अभिभावक सपोर्टिव रोल अदा करते हैं तो बड़ा होता बच्चा अपनी चीजें खुद ही मैनेज करना सीखने लगता है. हेलीकाॅप्टर पेरेंटिंग से बचने का मतलब ये नहीं है कि बच्चों को हर तरह की आजादी दे दी जाए. उन्हें कम से कम इतनी छूट तो दी जानी चाहिए जिससे उनके सोचने-समझने की क्षमता को विकसित होने का मौका मिल सके. जानकारों का मानना है कि हेलीकाॅप्टर व्यवहार के पीछे सोच तो अच्छी होती है लकिन अभिभावकों को समझना होगा कि इसके नकारात्मक प्रभाव बच्चों पर ना पड़े.
डिपे्रशन में धकेलता परफेक्शन
वो माता-पिता सावधान हो जाएं जो बच्चों के हर काम में परफेक्शन ढूंढ़ते हैं. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे बच्चों में भी डिप्रेषन की संभावना अधिक पाई गई है. ये बच्चे माता-पिता के डर से और उनके खौफ से कोई भी गलती करने से कतराते हैं. अभिभावकों द्वारा तय किए गए मानकों पर ये खरे नहीं उतर पाते हैं तो उसके लिए भी खुद को ही जिम्मेदार मानते हैं. मौजूदा समय में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर कुछ ज्यादा ही तवज्जो दी जाने लगी है. सभी माता-पिता चाहते हैं कि सोसायटी में बच्चा दूसरे बच्चों के मुकाबले अच्छा परफाॅर्म करे. माता-पिता कि ये चाहत बच्चों पर प्रेशर बना देती है. वो बच्चों की किसी भी असफलता को स्वीकार करना नहीं चाहते हैं. इसका सारा गुस्सा वो बच्चों पर निकालते हैं. मां-बाप के गुस्से से बच्चे पहले ही इतना ज्यादा घबरा जाते हैं कि कोई काम चाह कर भी सही नहीं कर पाते हैं. गलती होने के डर से वो नई चीजों के लिए प्रयास करने से कतराते हैं. बचपन से उनके मन में बैठा ये डर उनकी आगे की जिंदगी को काफी प्रभावित करता है. न तो वो कुछ नया सीख पाते हैं और न ही कोई क्रिएटिविटी डेवलप कर पाते हैं. कुछ बच्चों में अभिभावकों के गुस्से का खौफ इतना ज्यादा रहता है कि वो गलती करने के बाद उसे स्वीकार भी नहीं करते हैं. अगर समय रहते बच्चों के प्रति आपने अपने व्यवहार में परिवर्तन नहीं किया तो ये स्थिति भयावह हो सकती है. बच्चों के कोमल मन पर आप जैसी छाप छोड़ेंगे उनका बाल मन वैसे ही आने वाले कल के लिए तैयार होगा.
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