टूथब्रश में होते हैं 1 करोड़ बैक्टीरिया

 

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यह अविश्वसनीय लग सकता है लेकिन आपका टूथब्रश बैक्टीरिया की खान हो सकता है. एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है. मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पाया गया है कि एक टूथब्रश में 1 करोड़ से ज्यादा बैक्टीरिया हो सकते हैं. जिसमें ई कोली और स्टाफ जैसे बैक्टीरिया भी शामिल हैं. प्रोस्थोडेंटिस्ट डॉ. एन वेई ने ग्रैंडपैरेंट्स डॉट कॉम को बताया कि बिना ब्रश किए मुंह में इतनी मात्रा में कीटाणु हो सकते है जितने की एक बॉथरूम फ्लोर पर होते हैं.

टूथब्रश पानी से धोए जाने की वजह से भी दूषित हो सकते हैं जब हम अपने हाथ धोते हैं. या फिर यह इससे भी ज्यादा गंदे हो सकते है खुले फ्लश्ड टॉयलेट की वजह से. टॉयलेट स्प्रे से गिरने वाली गंदगी लंबे समय तक हवा में तैरती रहती है जब तक कि वह सतह पर बैठ ना जाएं. ऐसे में अगर आपका टूथब्रश फ्लोर पर गिर जाता है तो पांच सेकेंड का नियम यहां लागू नहीं होता. हवा में तैरते बैक्टीरिया के साथ बॉथरूम के फ्लोर पर आपके पैरों से लगकर उठने वाले बैक्टीरिया भी ब्रश में बैठ में जाते हैं.

दाल़, सेम खांए कॉलेस्ट्रॉल घटाएं

दाल़, सेम खांए कॉलेस्ट्रॉल घटाएं

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दिन में कम से कम एक बार खाने में सेम, मटर या दाल खाने से कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में रहता है और दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। सेंट माइकल हॉस्पीटल के चिकित्सक सिवेनपाइपर ने कहा कि दिन में एक समय भोजन में दाल खाने से पांच प्रतिशत तक कोलेस्ट्रॉल कम होता है।

उन्होंने कहा कि खाने में दाल को शामिल करना दिल के लिए फायदेमंद रहता है। उन्होंने कहा कि इससे दिल की बीमारियों का खतरा पांच से छह प्रतिशत तक कम होता है। दालों में ग्लाइसेमिक इंडेक्स (पाचन क्रिया के दौरान भोजन सामग्री का टूटना) का स्तर अपेक्षाकृत कम होता है और इनमें अतिरिक्त प्रोटीन और कोलेस्ट्रॉल को घटाने की क्षमता होती है। सिवेनपाइपर ने मेटा एनालाइसिस समीक्षा के तहत 1,037 लोगों पर अध्ययन किया।

अध्ययन में पता चला कि पुरुषों में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर महिलाओं की अपेक्षा कम होता है। इसका कारण महिलाओं का खान-पान में उचित ध्यान न देना हो सकता है। यह अध्ययन पत्रिका कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित हुई है।

कैंसर का इलाज अब और आसान

कैंसर का इलाज अब और आसान

Dr. Sapna Nangia
भारतीय पुरुषो में मुंह और गले का कैंसर सबसे ज़्यादा देखने को मिलता है क्योंकि आजकल सिग्रेट, पान मसाला  और तम्बाकू का सेवन बहुत ज़्यादा बढ़ गया है । यही कारण है की कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी में इंडिया सबसे आगे है । मुंह का  कैंसर अलसर बनकर मसूड़ों और ज़बान पर अगर तीन हफ्तों से ज़्यादा दिखे तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए, आवाज़ में बदलाव, गले में दर्द का  रहना, गले और मुंह में झनझनाहट होना सभी कैंसर की और इशारा करते है और ऐसी सूरत में बिना वक़्त गवाए तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिए ।

रेडियोथेरेपी कैंसर से लड़ने का इलाज़ है / इस में इलेक्ट्रो मैग्नेटिक रेज़ का इस्‍तेतमाल किया जाता है जो DNA सेल्स को खत्म कर के खतरनाक टिश्यू को खत्म कर देता है । ये एक बहुत इम्पोर्टेन्ट ज़ारिआ है हेड सर और मुंह के कैंसर के लिए । इस में बहुत चान्सेस है की FIRST Stage के पेशेंट्स 90 प्रतिशत ठीक हो जाते है और SECOND और  THIRD Stage के पेशेंट्स 70 प्रतिशत तक ठीक होने की सम्भावना होती है ।

इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल की ओंकोलॉजिस्ट डॉक्‍टर सपना नंगीआ का मानना है की कैंसर के पेटेंट्स जो सही वक़्त पर अपना इलाज़ शुरू करवा लेते है वो उतनी ही जल्दी अपनी नार्मल ज़िन्दगी जीने लगते है । जो IMRT ट्रीटमेंट नहीं करवाते उन्हें  अपनी नार्मल डाइट छोड़कर लिक्विड डाइट अपनानी पड़ती है क्‍योंकि  वो लोग नार्मल खाना डाइजेस्ट नहीं कर पाते और न ही उसका टेस्‍ट ले पाते है । और  तो और उनका मुंह एक सख्त लकड़ी की तरह हो जाता है और दांत भी ख़राब होने लगते है ।

डॉक्‍टर नंगीआ कहती है, जो भी मुंह और गले के कैंसर से लड़ रहा हो, उसका इलाज़ रेडियोथेरेपी , सर्जरी , कीमोथेरपी के साथ साथ IMRT के रूप में होना चाहिए । वो ये भी कहती है जनरल Physician , Dental surgeon  को भी इसकी जानकारी रहनी चाहिए क्योंकि पहला चेकउप मरीज का यही करते है ।

हिंसा की वजह है ग्लूकोज

 

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यदि आप अपने साथी पर बेवजह चीखते-चिल्लाते हैं, तो आपको अपने खून में ग्लूकोज के स्तर की जांच करानी चाहिए। ग्लूकोज का स्तर सामान्य से कम होने पर लोग गुस्सैल और आक्रामक हो जाते हैं। ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में संचार एवं मनोविज्ञान के प्रोफेसर ब्रैड बुश्मैन ने कहा कि अध्ययन में पता चला कि किस तरह भूख जैसा सामान्य सा कारक भी परिवार में कलह, लड़ाई-झगड़ों और कभी-कभी घरेलू हिंसा की भी वजह बन जाता है।

शोध में 107 विवाहित युगलों पर अध्ययन किया गया, जिसमें हर एक जोड़े से पूछा गया कि अपने विवाहित जीवन से संतुष्ट होने के बारे में उनकी क्या राय है? कुल 21 दिनों तक किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि विवाहित जोड़ों में हर शाम ग्लूकोज का स्तर साथी के साथ संबधों पर प्रभाव डालता है।

जिन लोगों में ग्लूकोज का स्तर कम पाया गया, वे अपने साथी पर ज्यादा गुस्सा करते हैं और तेज आवाज में बात करते हैं। बुशमैन ने कहा कि ग्लूकोज का स्तर कम होने से उत्पन्न भूख और क्रोध की स्थिति बेहद करीबी रिश्तों को भी प्रभावित कर सकती है। यह अध्ययन ऑनलाइन पत्रिका नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित हुआ है।

मोबाइल बना सकता है नामर्द!

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स्मार्टफोन या मोबाइल के ज्यादा क्रेजी पुरुष यूजर्स को सावधान हो जाने की जरूरत है। एक नई स्टडी में पता चला है कि मोबाइल के ज्यादा संपर्क में रहने से पुरुषों के नामर्द हो जाने का खतरा है। स्टडी के अनुसार अगर पुरुष दिन में चार घंटे या उससे अधिक समय तक मोबाइल अपने साथ रखते हैं, तो उनके नामर्द होने का खतरा उनकी तुलना में ज्यादा है, जो 2 घंटे तक मोबाइल के संपर्क में रहते हैं। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि खासकर पुरुषों को मोबाइल प्रेम से थोड़ा संयम बरतते हुए इसके संपर्क में दो घंटे से अधिक नहीं रहना चाहिए।

हालांकि वैज्ञानिक यह भी मान रहे हैं कि नई स्टडी के इस परिणाम को पुख्ता करने के लिए अभी और शोध की जरूरत है। इस नई स्टडी को हाल में यूरोपियन जर्नल ऑफ यूरोलॉजी में जारी किया गया है।

नहीं होगी कंप्यूटर से आंखें खराब

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आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक सौंदर्य साॅल्युशन मुहैया कराने वाली प्रमुख कंपनियों में से एक ओजोन आुयर्वेदिक्स ने आइटिस आयुर्वेदिक आई ड्राॅप पेष किया है। 11 प्रमुख जड़ी-बूटियों और गुलाब जल से तैयार यह आई ड्राॅप आंखों में चुभन और संक्रमण से मुक्ति दिलाने और आंखों की रोशनी बढ़ाने में मददगार है।

यह आई ड्राॅप आंखों में चुभन, जलन एवं थकान जैसी समस्याओं को दूर करता है। मौजूदा समय में धुएं एवं गंदगी वाले परिवेष, कंप्यूटर पर लंबे समय तक काम करने और काॅन्टैक्ट लैंस पहनने आदि की वजह से आंखों में थकान की समस्या पैदा हो जाती है जिसे यह आई ड्राॅप दूर कर राहत प्रदान करता है। आइटिस आई ड्राॅप चुभन, एलर्जिक कंजंक्टीवाइटिस, जलन या थकान की समस्या में बेहद प्रभावी है।

इस आई ड्राॅप के प्रमुख तत्वों में षहद, गुलाब जल और 11 अन्य महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों के रस षामिल हैं। चूंकि आइटिस का निर्माण 100 प्रतिषत आयुर्वेदिक है, इसलिए यह आई ड्राॅप न सिर्फ बेहद प्रभावी है बल्कि सुरक्षित, एंटी-इन्फ्लेमेटरी, एंटी-आॅक्सीडैंट, और एंटी-माइक्रोबायल भी है। जैसे ही यह ड्राॅप आंख में डाला जाता है, गुलाब जल का आधार आंखों को षांति का अहसास कराता है। इसमें षामिल षहद आंखों को संक्रमण से बचाने और आंखों की रोषनी में सुधार लाने में सक्षम है।

जड़ी-बूटियों के आराम, स्फूर्ति और चैन जैसे गुण धूल, धूप प्रदूशित हवा (एयर-कंडीषनिंग और सेंट्रल हीटिंग), धूम्रपान, अत्यधिक लाइट, खेल या लंबे समय तक कंप्यूटर इस्तेमाल की वजह से थकावट आदि से आंखों में पैदा हुई जलन को दूर करते हैं। ये जड़ी-बूटियां युवाओं और उन कामकाजी पेषेवरों के लिए उपयुक्त हैं जो कंप्यूटर स्क्रीन के सामने कई घंटे तक काम करते हैं। यह ड्राॅप सूजन, चुभन और आंखों से पानी बहने जैसी समस्याओं को कम करने में मददगार है।

इसलिए यदि आप कई घंटे तक कंप्यूटर के सामने काम करते हैं तो दिन के अंत में आपकी आंखें थक जाती हैं और लाल हो जाती हैं, भले ही आप आंखों से संबंधित किसी बीमारी से नहीं जूझ रहे हों। चिंता मत कीजिए! आइटिस आयुर्वेदिक आई ड्राॅप ऐसी जड़ी-बूटियों के गुणों से युक्त है जो आपकी आंखों को आराम और प्राकृतिक रूप से ताजगी प्रदान करेंगे। आइटिस आयुर्वेदिक आई ड्राॅप आंखों की रोषनी बढ़ाने में मददगार है। इस ड्राॅप को दिन में दो बार सुबह और रात को सोने से पहले डालने की जरूरत होती है।

ओजोन आयुर्वेदिक्व का मकसद आइटिस को इस श्रेणी में षीर्श ब्रांड के तौर पर जगह दिलाना है और वह अपने कारोबार में कई गुना वृद्धि का लक्ष्य हासिल करने पर ध्यान दे रही है। आइटिस वित्त वर्ष 2014-15 में कंपनी के लिए फोकस ब्रांड है और कंपनी केमिस्ट और ऑप्टीशियन आउटलेटों पर इस उत्पाद की पहुंच बढ़ाने के लिए सक्रियता के साथ काम कर रही है। अपनी ब्रांड निर्माण पहल के तहत कंपनी ऑप्टीशियन सम्मेलन, आंखों की जांच के शिविर और आउटलेटों पर मास मीडिया एवं वितरण अभियान के जरिये विज्ञापन जैसी विभिन्न सीआरएम और बीटीएल गतिविधियों पर जोर देगी। इन सभी गतिविधियों के लिए मुख्य फोकस होगा लक्षित वर्ग को आंखों की नियमित देखभाल, आइटिस जैसे अन्य कौन से आयुर्वेदिक आई ड्रॉप इस्तेमाल किए जाने चाहिए, आदि के बारे में जागरूक करना होगा।

हरे आलू से करें परहेज

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आलू को बतौर सब्जी इस्तेमाल करने के अलावा भी खाने की कई चीजों में इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन आलू अगर हरा हो जाए तो उसे खाने से बचना चाहिए। इन हरे आलूओं में क्लोरोफिल की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जिस वजह से ये हरे हो जाते हैं, जोकि सेहत के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। रिसर्च में पता लगा है कि हरे आलुओं में सोलैनाइन (solanine) बहुत ज्यादा मात्रा में होता है, जोकि जहरीला पदार्थ है। ज्यादा मात्रा में इसका सेवन शरीर के लिए नुकसानदायक हो सकता है। साथ ही, इसके सेवन से जी मिचलाना, सिरदर्द, डायरिया, उलटियां जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। नेब्रास्का लिंकन यूनिवर्सिटी की ओर से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि अगर 45 किलो वजन का शख्स 16 आउन्स (करीब आधा किलो) हरे आलू का सेवन करे तो वह बीमार पड़ सकता है। आलुओं को हरा होने से बचाने के लिए उन्हें हमेशा ठंडी और डिम लाइट वाली जगह पर ही जमा करना चाहिए। अगर हरा आलू खा रहे हैं और उसका स्वाद कड़वा लगता है, तो उसे बिल्कुल न खाएं।